The Story of the Blue Jackal
नीले सियार की कहानी
एक बार की बात है — एक सियार जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था। तभी हवा के तेज़ झोंके से पूरा पेड़ गिर पड़ा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता हुआ अपनी मांद तक पहुंचा। कई दिन बाद जब वह मांद से बाहर आया, तो उसे बहुत भूख लगी। उसका शरीर बेहद कमज़ोर हो गया था।
उसे एक खरगोश नज़र आया। उसे दबोचने के लिए वह झपटा, लेकिन कुछ दूर भागकर ही हांफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहां रह गई थी! फिर उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की, पर वहां भी असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत ही नहीं हुई।
वह खड़ा सोचने लगा — "शिकार तो मैं कर नहीं पा रहा हूं, भूखों मरने की नौबत आ जाएगी।" वह इधर-उधर घूमने लगा, लेकिन कहीं कोई मरा जानवर नहीं मिला। घूमते-घूमते वह एक बस्ती में पहुंच गया। उसने सोचा शायद कोई मुर्गी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो वह गलियों में घूमने लगा।
तभी कुत्ते भौंकते हुए उसके पीछे पड़ गए। सियार को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। वह गलियों में घुसकर उन्हें छकाने की कोशिश करने लगा, पर कुत्ते तो कस्बे की गली-गली से परिचित थे। सियार के पीछे पड़े कुत्तों की टोली बढ़ती जा रही थी और सियार के कमज़ोर शरीर की ताकत घटती जा रही थी।

भागते-भागते सियार रंगरेज़ों की बस्ती में पहुंचा। वहां उसे एक घर के सामने बड़ा ड्रम दिखाई दिया। जान बचाने के लिए वह उसी ड्रम में कूद पड़ा। उस ड्रम में कपड़े रंगने के लिए नीला रंग घुला हुआ था।
कुत्तों का टोला भौंकते हुए आगे निकल गया। सियार सांस रोककर रंग में डूबा रहा, सिर्फ सांस लेने के लिए थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब ख़तरा टल गया है, तो वह बाहर निकला। अब उसका सारा शरीर नीले रंग में रंग चुका था।

जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसका पूरा शरीर नीला हो गया है। जो भी जानवर उसे देखता, डर के मारे कांप जाता। यह देखकर रंगे सियार के दुष्ट दिमाग में एक योजना आई।
उसने भागते हुए जानवरों को आवाज़ दी — "भाइयों, भागो मत, मेरी बात सुनो!"
जानवर ठिठककर रुक गए। सियार ने कहा, "देखो, मेरा यह रंग! ऐसा रंग किसी जानवर का धरती पर है क्या? नहीं न? इसका मतलब समझो — भगवान ने मुझे यह ख़ास रंग देकर तुम्हारे पास भेजा है। तुम सब जानवरों को बुला लाओ, ताकि मैं भगवान का संदेश सुना सकूं।"
उसकी बातों का सब पर गहरा असर हुआ। वे जाकर जंगल के अन्य सभी जानवरों को बुलाकर लाए। जब सब आ गए, तो रंगा सियार एक ऊंचे पत्थर पर चढ़ गया और बोला —
"वन्य प्राणियो! प्रजापति ब्रह्मा ने स्वयं मुझे इस अलौकिक रूप में बनाकर कहा — ‘संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं है। तुम जाकर उनका राजा बनो और उनका कल्याण करो।’ अब तुम सब अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्रछाया में निर्भय होकर रहो।"

सियार के अजीब रंग और उसके शब्दों से सभी जानवर चकरा गए। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत न हुई। देखते ही देखते सारे जानवर उसके चरणों में लोट गए और बोले — "हे ब्रह्मा के दूत, प्राणियों में श्रेष्ठ ककुदुम! हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं।"
एक बूढ़े हाथी ने पूछा, "हे सम्राट, अब हमें बताइए कि हमारा कर्तव्य क्या है?"
सियार ने शाही अंदाज़ में पंजा उठाकर कहा, "अपने सम्राट की खूब सेवा करो। हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए।"
शेर ने सिर झुकाकर कहा, "महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करना हमारा सौभाग्य है।"
बस, सियार के शाही ठाट हो गए। कई लोमड़ियां उसकी सेवा में लगी रहतीं, भालू पंखा झुलाता, और सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा जताता, उसकी बलि दी जाती। जब वह घूमने निकलता, तो हाथी आगे-आगे सूंड उठाकर बिगुल की तरह चिंघाड़ता, और दो शेर उसके दोनों ओर अंगरक्षक बनकर चलते।
राजा बनने के बाद उसने चालाकी से आदेश दिया कि जंगल के सारे सियार वहां से निकल जाएं — ताकि उसकी असलियत कोई पहचान न सके।
एक रात सियार अपने शाही मांद में आराम कर रहा था। बाहर उजाला देखकर उठा तो देखा — चांदनी रात खिली है। पास के जंगल में सियारों की टोली "हू हू…" की आवाज़ में बोल रही थी। वह आवाज़ सुनते ही सियार अपना आपा खो बैठा। उसके भीतर का असली स्वभाव जाग गया और वह भी मुंह उठाकर "हू हू…" करने लगा।

शेर और बाघ ने यह देखा तो चौंक गए। बाघ बोला, "अरे, यह तो सियार है! हमें धोखा देकर सम्राट बन रहा था। मारो इस नीच को!"
दोनों उस पर झपटे और देखते ही देखते उसका काम तमाम कर दिया।
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