The Cobra and the Crows
दुष्ट सर्प और कौवे
एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर घोंसला बनाकर एक कौआ–कव्वी का जोड़ा रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में, कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहने लगा।
हर वर्ष, मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती, और वह सर्प मौका पाकर घोंसले में घुस जाता और सारे अंडे खा जाता।
एक दिन, जब कौआ और कव्वी जल्दी भोजन पाकर लौटे, तो उन्होंने सर्प को अपने घोंसले में रखे अंडों पर झपटते हुए देखा। अंडे खाकर सर्प चला गया।
कौए ने कव्वी को ढांढस बंधाया — "प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया है, कुछ उपाय भी सोच लेंगे।"
कौए ने काफी सोच-विचार किया। उसने पहले वाला घोंसला छोड़कर ऊपर की एक टहनी पर नया घोंसला बनाया और कव्वी से कहा — "यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। यह घोंसला पेड़ की चोटी के पास है, और ऊपर आकाश में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की दुश्मन है, सर्प यहां तक आने का साहस नहीं करेगा।"
कव्वी ने उसकी बात मानी और नए घोंसले में अंडे दिए, जो सुरक्षित रहे। कुछ दिनों बाद उनमें से बच्चे भी निकल आए।
उधर सर्प ने जब नीचे का घोंसला खाली देखा, तो उसने सोचा कि शायद कौआ और कव्वी डरकर चले गए हैं। फिर भी वह टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ–कव्वी उसी पेड़ से उड़ते और लौटते हैं। उसे समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला ऊपर बना लिया है।
एक दिन सर्प खोह से निकला और ऊपर चढ़ गया। उसने नया घोंसला ढूंढ लिया। घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प ने उन्हें एक-एक कर निगल लिया और फिर अपनी खोह में लौटकर डकारें लेने लगा।
जब कौआ और कव्वी लौटे, तो घोंसला खाली देखकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट और नन्हे बच्चों के पंख बिखरे देखकर वे सब समझ गए। कव्वी रो पड़ी — "तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे इस सांप का भोजन बनते रहेंगे?"
कौआ बोला — "नहीं! यह माना कि हमारे सामने बड़ी समस्या है, पर यहां से भागना इसका हल नहीं है। विपत्ति के समय मित्र ही काम आते हैं। हमें अपनी लोमड़ी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।"
दोनों तुरंत लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने उनकी दुखभरी कहानी सुनी और कहा — "मित्रो, तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। मेरे दिमाग में एक चतुर तरकीब आई है, जिससे उस दुष्ट सर्प से छुटकारा पाया जा सकता है।"
लोमड़ी की योजना सुनकर कौआ–कव्वी बहुत खुश हुए। उन्होंने लोमड़ी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आए।
अगले ही दिन योजना को अमल में लाया गया।
उसी वन में एक बड़ा सरोवर था, जिसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहाँ जल-क्रीड़ा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक और सैनिक भी आते थे।
उस दिन जब राजकुमारी आई और स्नान के लिए जल में उतरी, तो योजना के अनुसार कौआ उड़ता हुआ वहाँ पहुँचा। उसने किनारे पर रखे कपड़े और आभूषणों को देखा। कपड़ों के ऊपर ही राजकुमारी का प्रिय हार रखा था, जो हीरे और मोतियों से जड़ा हुआ था।
कौए ने जोर से "कांव–कांव!" की आवाज़ लगाई ताकि सबका ध्यान उसकी ओर जाए। जब सबकी नज़र उसकी ओर घूमी, तो कौए ने राजकुमारी का हार चोंच में दबाया और उड़ गया।
सहेलियाँ चिल्लाईं — "देखो! वह राजकुमारी का हार लेकर जा रहा है!"
सैनिकों ने ऊपर देखा — सचमुच एक कौआ हार लेकर उड़ रहा था। वे उसके पीछे दौड़ पड़े। कौआ धीरे-धीरे उड़ता हुआ उसी बरगद के पेड़ की ओर गया। जब सैनिक पास पहुँचे, तो कौए ने हार इस तरह गिराया कि वह सीधे सांप की खोह में जा गिरा।
सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुँचे। सरदार ने भीतर झांका — वहाँ हार पड़ा था और उसके पास ही काला सर्प कुंडली मारे बैठा था।
वह चिल्लाया — "पीछे हटो! अंदर एक नाग है!"
सरदार ने भाला उठाया और खोह में घोंप दिया। सर्प घायल होकर फुफकारता हुआ बाहर निकला, और सैनिकों ने अपने भालों से उसे टुकड़े-टुकड़े कर डाला।
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