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The Turtle that fell off the Stick

मूर्ख बातूनी कछुआ

एक तालाब में कम्बुग्रीव नाम का एक कछुआ रहता था। उसी तालाब में दो हंस भी तैरने के लिए आते थे। वे बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। कछुए और हंसों में जल्द ही गहरी दोस्ती हो गई।
हंसों को कछुए का धीमे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगता था। वे ज्ञानी भी थे और कछुए को अद्भुत बातें बताया करते — ऋषि-मुनियों की कहानियाँ, दूर-दराज की जगहों के अनुभव और जीवन की सीखें। कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता।
बस, उसमें एक कमी थी — उसे बीच में टोका-टाकी करने की आदत थी। परंतु अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। समय बीतता गया और उनकी मित्रता और गहरी होती गई।
एक बार भयंकर सूखा पड़ा। बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं गिरी। तालाब का पानी सूखने लगा। मछलियाँ तड़प-तड़पकर मर गईं। अंततः तालाब में केवल कीचड़ रह गया।
कछुआ बड़ी मुसीबत में पड़ गया — अब उसका जीवन संकट में था। वहीं रहना उसके लिए मृत्यु समान था। हंस अपने मित्र के संकट से दुखी थे और उसकी सहायता का उपाय सोचने लगे।
वे उसे ढांढस बंधाते और हिम्मत रखने की सलाह देते। वे केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे — वे सचमुच समाधान की तलाश में दूर-दूर तक उड़ते रहे।
एक दिन वे लौटे और बोले, "मित्र! यहां से पचास कोस दूर एक झील है, जिसमें बहुत पानी है। वहां तुम सुख से रहोगे।"
कछुआ उदास स्वर में बोला, "पचास कोस? इतनी दूर जाने में तो महीनों लगेंगे। तब तक मैं मर जाऊँगा।"
कछुए की बात सही थी। तब हंसों ने बुद्धि लगाई और एक उपाय निकाला।
वे एक लकड़ी लाए और बोले — "मित्र, हम दोनों इस लकड़ी के सिरे अपनी चोंचों में पकड़ेंगे, और तुम बीच में अपने मुँह से इसे थामे रहना। इस तरह हम तुम्हें उड़ाकर झील तक ले चलेंगे।"
फिर उन्होंने चेतावनी दी — "पर याद रखना, उड़ान के दौरान अपना मुँह नहीं खोलना। वरना तुम गिर जाओगे।"
कछुए ने सिर हिलाकर हामी भर दी।
हंस उड़ चले। उनके बीच में लकड़ी को मुँह से पकड़े कछुआ लटका हुआ था। वे एक कस्बे के ऊपर से उड़ रहे थे कि नीचे के लोगों ने यह अद्भुत दृश्य देखा।
लोग आश्चर्य से चिल्लाने लगे — कोई छज्जों पर दौड़ा, कोई छतों पर। बच्चे, बूढ़े, जवान, सब उस दृश्य को देखने लगे।
कछुए की नज़र नीचे पड़ी। उसे देखकर अभिमान हुआ कि सब उसे देख रहे हैं। वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और बोल उठा — "देखो! कितने लोग हमें देख रहे हैं!"
मुँह खुलते ही वह नीचे गिर पड़ा — और उसकी हड्डी-पसली का पता तक न चला।

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