एक जंगल में एक पेड़ पर एक गौरैया का घोंसला था। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन-चार बंदरों ने उसी पेड़ के नीचे आश्रय लिया।
एक बंदर बोला, "कहीं से आग मिल जाए तो ठंड दूर हो सकती है।" दूसरे बंदर ने सुझाया, "देखो, यहाँ कितनी सूखी पत्तियाँ गिरी पड़ी हैं। इन्हें इकट्ठा करके हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।"
बंदरों ने सूखी पत्तियों का एक ढेर बनाया और फिर उसके चारों ओर बैठकर सोचने लगे कि इसे कैसे जलाया जाए। तभी एक बंदर की नज़र दूर हवा में उड़ते हुए एक जुगनू पर पड़ी। वह उछल पड़ा और चिल्लाने लगा, "देखो! हवा में चिंगारी उड़ रही है। इसे पकड़कर ढेर के नीचे रख देंगे तो आग सुलग जाएगी।"
"हाँ-हाँ!" कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौड़ पड़े।
पेड़ पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थी। वह चुप न रह सकी और बोली, "बंदर भाइयों, यह चिंगारी नहीं है, यह तो जुगनू है।"
एक बंदर गुस्से में गुर्राया, "मूर्ख चिड़िया! चुपचाप अपने घोंसले में दुबकी रह, हमें मत सिखा।"
इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को पकड़ लाया और अपनी हथेलियों के बीच दबाकर ढेर के नीचे रख दिया। सारे बंदर चारों ओर से पत्तियों के ढेर में फूंक मारने लगे।
गौरैया ने फिर सलाह दी, "भाइयों, आप गलती कर रहे हैं। जुगनू से आग नहीं सुलगेगी। दो पत्थरों को टकराकर देखिए, उससे चिंगारी निकलेगी।"
बंदरों ने उसे घूरा, लेकिन जब आग नहीं लगी तो गौरैया ने फिर कहा, "कम से कम दो सूखी लकड़ियों को आपस में रगड़कर देखिए, शायद उससे आग लग जाए।"
अब बंदर और खीज गए। उनमें से एक गुस्से से भर उठा, आगे बढ़ा और गौरैया को पकड़कर पेड़ के तने पर जोर से दे मारा। बेचारी गौरैया फड़फड़ाती हुई नीचे गिरी और मर गई।
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